७-भरत-चरित्र ८-भरतजीका मृगके मोहमें फँसकर मृगयोनिमें जन्म लेना ९-भरतजीका ब्राह्मणकुलमें जन्म १०-जडभरत और राजा रहूगणकी भेंट ११-राजा रहूगणको भरतजीका उपदेश १२-रहूगणका प्रश्न और भरतजीका समाधान १३-भवाटवीका वर्णन और रहूगणका संशयनाश
"बड़े-बड़े विचारशील योगी-यति अपने प्राण, मन और इंद्रियोंको वश में करके दृढ़ योगाभ्यासके द्वारा ह्रदयमें भगवान की उपासना करते हैं।" "उन्हें जिस पद की प्राप्ति होती है,उसीकी प्राप्ति उन शत्रुओं को भी हो जाती है, जो भगवानसे वैर-भाव रखते हैं।" "भगवानकी दृष्टि में उपासक के परिछिन्न या अपरिछिन्न भावमें कोई अंतर नहीं है। चाहे जैसे-कैसे भी हो,चरणोंका स्मरण दिनरात बना रहे।"