राजाभरत चंचलमृग ब्रह्मज्ञानी जड़भरत हुये।
उपदेशक समाधानी भवाटवी - रहुगण के संशयहर्ता हुए।
"बड़े-बड़े विचारशील योगी-यति अपने प्राण, मन और इंद्रियोंको वश में करके दृढ़ योगाभ्यासके द्वारा ह्रदयमें भगवान की उपासना करते हैं।" "उन्हें जिस पद की प्राप्ति होती है,उसीकी प्राप्ति उन शत्रुओं को भी हो जाती है, जो भगवानसे वैर-भाव रखते हैं।" "भगवानकी दृष्टि में उपासक के परिछिन्न या अपरिछिन्न भावमें कोई अंतर नहीं है। चाहे जैसे-कैसे भी हो,चरणोंका स्मरण दिनरात बना रहे।"
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