सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

वेदस्तुति

 "बड़े-बड़े विचारशील योगी-यति अपने प्राण, मन और इंद्रियोंको वश में करके दृढ़ योगाभ्यासके द्वारा ह्रदयमें भगवान की उपासना करते हैं।"

"उन्हें जिस पद की प्राप्ति होती है,उसीकी प्राप्ति उन शत्रुओं को भी हो जाती है, जो भगवानसे वैर-भाव रखते हैं।"

"भगवानकी दृष्टि में उपासक के परिछिन्न या अपरिछिन्न भावमें कोई अंतर नहीं है।

चाहे जैसे-कैसे भी हो,चरणोंका स्मरण दिनरात बना रहे।"

"बड़े-बड़े विचारशील योगी-यति अपने प्राण, मन और इंद्रियोंको वश में करके दृढ़ योगाभ्यासके द्वारा ह्रदयमें भगवान की उपासना करते हैं।"

"उन्हें जिस पद की प्राप्ति होती है,उसीकी प्राप्ति उन शत्रुओं को भी हो जाती है, जो भगवानसे वैर-भाव रखते हैं।"

"भगवानकी दृष्टि में उपासक के परिछिन्न या अपरिछिन्न भावमें कोई अंतर नहीं है।

चाहे जैसे-कैसे भी हो,चरणोंका स्मरण दिनरात बना रहे।"भजन

https://youtu.be/HgRM7Xdja3g

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Index

७-भरत-चरित्र ८-भरतजीका मृगके मोहमें फँसकर मृगयोनिमें जन्म लेना  ९-भरतजीका ब्राह्मणकुलमें जन्म  १०-जडभरत और राजा रहूगणकी भेंट  ११-राजा रहूगणको भरतजीका उपदेश  १२-रहूगणका प्रश्न और भरतजीका समाधान  १३-भवाटवीका वर्णन और रहूगणका संशयनाश राजाभरत चंचलमृग ब्रह्मज्ञानी जड़भरत हुये। उपदेशक समाधानी भवाटवी - रहुगण के संशयहर्ता हुए।  

संवाद मन 5/11

 विरक्त महापुरुषों के सत्संग से प्राप्त ज्ञान रूप खड़ग के द्वारा मनुष्यको इस लोकमें ही अपने मोहबंधन को काट डालना चाहिए। फिर श्री हरि की लीलाओंके कथन और श्रवणसे भगवत स्मृति बनी रहनेके कारण वह सुगमतासे ही संसारमार्ग को पार करके भगवानको प्राप्त कर सकता है। भागवत महापुराण स्कंध 5 अध्याय 12 श्लोक 16.